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सोमवार, 8 जून 2020

न बोले तुम न मैंने कुछ कहा

रचना भागती हुई बस के पीछे पीछे ऊपर चढ़ने के लिए कोशिश कर रही थी।  वो समय से ऑफिस पहुँचना चाहती थी क्योंकि आज उस ऑफिस में नौकरी का उसका पहला ही दिन था।  जल्दबाज़ी में उसका पाँव फिसला और अचानक एक अजनबी की बाहों ने उसे सहारा देकर गिरने से बचा लिया।  यह अरविन्द था जो उसी ऑफिस में अच्छी पोस्ट पर कार्य करता था।  रचना - थैंक्स आपने मुझे बचा लिया वरना पता नहीं मेरा क्या हाल होता।  अरविन्द ने कहा - मैडम आखिर इतनी जल्दी आप कहाँ जाना चाहती थी।  रचना-वो मेरा पहला दिन था मैं बॉस के सामने लेट नहीं होना चाहती थी नहीं तो मेरा फर्स्ट इम्प्रैशन ही गलत पड़ता।  अरविन्द बोला -अच्छा मैडम अब समझा लेकिन आगे से सावधानी रखनी होगी।  रचना -जी शुक्रिया ध्यान रखूँगी।  वैसे आप कहाँ जा रहे हैं। अरविन्द ने कहा - यहीं अहिंसा सर्किल जा रहा हूँ  वहीं मेरा ऑफिस है एक हाऊसिंग सोसाइटी का उसमें काम करता हूँ।  रचना बोली - मुझे भी वहीं जाना है।  चलो फिर साथ चलते हैं अरविन्द बोला  और साथ में कदम बढ़ाकर चलने लगा।  लिफ्ट में उनको सेकेण्ड फ्लोर पर जाना था दोनों ने ही बटन ऑन किया तो उनकी अँगुलियाँ आपस में टच हुईं।  दोनों ने एक दूसरे को सॉरी बोला। 

अब दोनों अपनी फ्लोर पर उतर गए।  अरविन्द के सामने की सीट ही रचना को अलॉट हुई।  दोनों अब अजनबी नहीं रह गए थे।  धीरे धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन रचना थोड़ी संकोची प्रवृति की थी यह अरविन्द समझ चुका था।  वो भी बहुत ही संक्षेप वार्तालाप करता था।   ऑफिस के  डेकोरम का भी सवाल था।  रचना यह बात से अच्छी  तरह से वाकिफ थी कि लोगों को तो मसाला मिलना चाहिए किसी के ऊपर छींटाकसी करने का। वो इसलिए भी ऑफिस में बहुत संयमित व्यवहार करती थी।  बाहर तो दोनों बस में आते जाते समय साथ होते थे।  रचना की एक सहेली कुसुम बन गई थी जो थोड़ी वाचाल थी।  लेकिन एक साथी की तो जरूरत थी ही दोनों इकट्ठे ही अपना खाना खाते थे चाय पीते थे।  दोनों की सीट साथ साथ ही थी।  कुसुम  भी अरविन्द से प्रभावित थी लेकिन अरविन्द उसे ज्यादा लिफ्ट नहीं देता था।  अरविन्द सिर्फ रचना की तरफ ही चुपके चुपके देखकर कभी कभी मुस्कुरा देता था।  एक दिन अचानक ही बहुत तेज़ बारिश हुई रचना छाता नहीं लाई थी अरविन्द ने उसे पूरा भीगने से बचाने के लिए अपना कोट उतार दिया जिसे रचना ने ओढ़ लिया।  यहीं से एक तरह से उनकी प्रेम कहानी का जन्म हुआ जो बिना कुछ कहे बिना किसी से कुछ सुने सिलसिला शुरू हुआ और आँखों ही आँखों  में प्यार का इज़हार हुआ इकरार हुआ। 
@मीना गुलियानी 

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