यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 11 जून 2020

क्यों अधीर अब होता

रे मन तो क्यों अधीर अब होता
तेरे अंत:करण में बहता जीवन का सोता

निज चेतना जागृत कर
तू काहे निद्रा में सोता

उठ जाग त्याग भ्रम जाल
मत रह इनमें खोता

माया है कपट की चेरी
 फंसकर जीवन तू खोता
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें