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रविवार, 15 जनवरी 2017

लम्हे गुज़र न जाएँ कहीँ

थामके बैठो कहीँ ये दिल फिसल न जाए कहीँ
मुझको ये डर है कि तू भी बदल न जाए कहीँ

यूँ तो मुझे खुद पे ऐतबार बहुत है लेकिन
ये बर्फ आँच के आगे पिघल न जाए कहीँ

तेरे मयकदे से जो पी है उसकी खुमारी बाकी है
डर है सारी उम्र इसी नशे में गुज़र न जाए कहीँ

हवा है तेज अभी दरवाजों को बन्द कर लेना
ये बुझती राख शरारों में बदल न जाए कहीँ

धड़कने तेज़ हुई हैं रफ़्ता रफ़्ता तेरे करीब आने से
कहदो इस वक्त से ठहरे लम्हे गुज़र न जाएँ कहीँ
 @ मीना गुलियानी


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