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रविवार, 29 जनवरी 2017

हूँ परेशां कैसे दिखलाऊंगा

कभी दिल पे हाथ रखके मेरी बेबसी को समझो
तुमने जिस तरह से चाहा वैसा ही रहा हूँ मैं

कितनी ही चट्टानों से फिसला  कितने तूफानों से गुज़रा
तेरे ही इंतज़ार में इसी जगह पर बैठा रहा हूँ मैं

मैंने तो अपने  घर बैठे ही तबाही का मंज़र देखा किया
जिंदगी जैसे भी गुज़री तेरी वजह सहता रहा हूँ मैं

मै हमेशा  तेरे साथ ही हर कदम पर चलता रहा
तूने मुड़के न देखा यही दर्द सहता रहा हूँ मैं

इतना सारा ग़म भी दिल में जब इकठ्ठा कर लिया
हूँ परेशां कैसे दिखलाऊंगा यही सोच रहा हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

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