ज़िन्दगानी का कोई मकसद ही नहीँ है
इस इमारत में कोई गुम्बद ही नहीँ है
पेड़ तो खूब हैं तेरे इस बगीचे में
शीतल छाया दे जो बरगद नहीँ है
तुमको देखके यूँ महसूस हुआ है मुझको
देखने मैं जो चला था वो अमजद नहीँ है
अब न बाकी रही हमारे पैरों तले ज़मीन
ये बात और है जिस्म में जुम्बिश नहीँ है
यूँ तो गुज़रे हैं मेरे कूचे से आमज़द कई
जो तिश्नगी मिटादे ऐसा हमदर्द नहीँ है
@मीना गुलियानी
इस इमारत में कोई गुम्बद ही नहीँ है
पेड़ तो खूब हैं तेरे इस बगीचे में
शीतल छाया दे जो बरगद नहीँ है
तुमको देखके यूँ महसूस हुआ है मुझको
देखने मैं जो चला था वो अमजद नहीँ है
अब न बाकी रही हमारे पैरों तले ज़मीन
ये बात और है जिस्म में जुम्बिश नहीँ है
यूँ तो गुज़रे हैं मेरे कूचे से आमज़द कई
जो तिश्नगी मिटादे ऐसा हमदर्द नहीँ है
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें