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गुरुवार, 5 जनवरी 2017

अनन्त में लीन होना ही उद्देश्य सारा

मेरे अन्तस् में भी एक नदी की धारा है बहती
जो निरन्तर सागर से मिलने को ही है कहती

न जाने कब तक वो उस तलहटी की चट्टानों में
टकराकर वीरान राहों में ढूंढेगी रास्ता तूफानों में

जाने कब तक ये प्यासी आँखे इन राहों में बरसेंगी
तुझसे मिलने के लिए इस पार कब तलक तरसेंगी

आवेग होता है क्षणिक भर फिर व्याकुल वो होती  हैं
सागर की ओर वो बढ़ती फिर उसमें विलीन होती हैं

यही घटनाक्रम है चलता शायद यही होती  है जीवन धारा
अहम विलोपित कर अनन्त में लीन होना ही उद्देश्य सारा
@मीना गुलियानी 

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