यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 8 जनवरी 2017

फूल तेरी राहों में बिखराऊँगा

मैं अपनी चाहत के खोये पलों को 
अतीत के सागर से खोज लाऊँगा 

मैं अपनी ग़ज़लों में रंग भरना चाहता हूँ 
बहारों के गीत बाहों में भरके लाऊँगा 

विदाई के सफर में दर्द होता तो है 
वसन्त को मैं मुकाम पे पहुँचाऊँगा 

अपने माथे से मैं उलझन की शिकन 
 रूठे हुओं को मनाकर मैं  मिटाऊँगा 

मेरी आहों की गंध अब न कभी आएगी 
चाहत के फूल तेरी राहों में बिखराऊँगा 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें