तर्ज -----होठों से छू
आये है शरण तेरी गुरुदेव कृपा करदो
इस दीन दुखी मन में आनन्द सुधा भरदो
अन्जानी मंजिल है चहुं दिशा है अँधियारा
करुणानिधान अब तो बस तेरा है सहारा
टूटी मन वीणा में भक्ति का स्वर भर दो
किस भांति करूँ पूजा कोई विधि नही जानू
तेरा स्वरूप भगवन किस आँख से पहचानू
इस दास अकिंचन को निज परमधाम दे दो
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