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रविवार, 12 नवंबर 2017

ऐसी कोई व्यवस्था बना दो

आज डोलने लगे धरा भी
ऐसी तुम हुंकार लगा दो
धरती से अंबर सब डोले
अलख का नारा लगा दो

जाग उठे सारी ये जनता
सोये इनके भाग्य जगा दो
खोया सब विश्वास ये पाएं
ऐसा कुछ करके दिखला दो

हर नारी सम्मान को पाए
ऐसी जागृति देश में ला दो
सबकी मर्यादा रहे सुरक्षित
सुप्त संस्कारों को जगा दो

देश में  सब खुशहाल रहें
 शान्ति का मार्ग दिखा दो
सबकी हर पीड़ा मिट जाए
ऐसा प्रेम का दीप जला दो

कोई रहे न भूखा प्यासा
अन्न  समस्या सुलझा दो
हर कोई सुख से सो जाए
ऐसी कोई व्यवस्था बना दो
@मीना गुलियानी 

3 टिप्‍पणियां:

  1. GHR GHR SHIKSHA KA DEEP JLAO
    GHR GHR MEIN UJIYAARA LAO
    UJIYAARA JG KO ROSHN HAI KRTA
    NAI SHKTI JIVN MEIN BHRTAA
    IS UJIYAARE KO APNAAO\
    2BDHE GYAAN HO JIVN UJLLA
    HO DOOR MN KA ANDHERAA
    APNE JIVN KO MEHKAOO
    GHR GHR SHIKSHAA KAA DEEP JLAOO--ASHOK

    जवाब देंहटाएं
  2. अब मिटे कालिमा काल की
    जीवन में हो उल्लास
    अब बीते रात पतझड़ की
    आये वसंत का नवप्रभात

    लदें वृक्ष सब फलों से
    कलियाँ महकें
    और खेत खलिहान भरें
    धानी चुनर पहने धरती का
    नया नया परिहास

    जल उठें तुरंत बुझते दीपक
    उमड़े नवजीवन की आशा
    अब मिले अनुतरित प्रश्नों की
    बस एक नई सी परिभाषा
    पूरी हो जनमानस की आस
    झिलमिल सुख सपनों का आकाश

    युग बदले कटे तिमिर
    मन में हो दृढ विशवास
    उतरे माँ शारदा सूर्य रश्मि रथ से
    फैले चहुं ओर प्रकाश
    बुझ जाए अब युग युग की प्यास
    जग में नव मूल्यों का उजास

    माता तुम्हारी दया से उपजे ज्ञान प्रवाह 0
    मुखरित हों नव गीत नित
    भरें जीवन में उत्साह
    जग में बस तुमसा न कोई
    हमको बस एक तुम्हारी आस


    -Ashok Kumar
    अब मिटे कालिमा काल की
    जीवन में हो उल्लास
    अब बीते रात पतझड़ की
    आये वसंत का नवप्रभात

    लदें वृक्ष सब फलों से
    कलियाँ महकें
    और खेत खलिहान भरें
    धानी चुनर पहने धरती का
    नया नया परिहास

    जल उठें तुरंत बुझते दीपक
    उमड़े नवजीवन की आशा
    अब मिले अनुतरित प्रश्नों की
    बस एक नई सी परिभाषा
    पूरी हो जनमानस की आस
    झिलमिल सुख सपनों का आकाश

    युग बदले कटे तिमिर
    मन में हो दृढ विशवास
    उतरे माँ शारदा सूर्य रश्मि रथ से
    फैले चहुं ओर प्रकाश
    बुझ जाए अब युग युग की प्यास
    जग में नव मूल्यों का उजास

    माता तुम्हारी दया से उपजे ज्ञान प्रवाह 0
    मुखरित हों नव गीत नित
    भरें जीवन में उत्साह
    जग में बस तुमसा न कोई
    हमको बस एक तुम्हारी आस


    -Ashok Kumar

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