मेरे सपने मेरी आँखों में लहलहाते हैं
होठों पे थरथराते हैं बिन कहे रह जाते हैं
मेरे सपनों में इंद्रधनुष रंग भरता है
बादल भी कूची सा बन बिखरता है
मैं फूलों से रंग बिरंगे रंग चुनती हूँ
उनसे सपनों का ताना बाना बुनती हूँ
कभी चम्पा चमेली जूही का फूल मैं
बनाती हूँ ,उन्हें देख देख हर्षाती हूँ
मलयानिल के झोंके सुगंध भरते हैं
हरी दूब का बिछौना बनता है मेरा
मेरे सपनों में प्रकृति का है पहरा
धरा से आकाश तक हिंडोला मेरा
चन्द्रमा की किरणें आके झुलाती हैं
शीतल बयार लोरी मुझे सुनाती है
तारों की चूनर चन्द्रमा का टीका
पहन इठलाती हूँ झूम जाती हूँ
जुगनू उजाला करते हैं राहों में
कभी जलते बुझते हैं वीरानों में
मेरे सपने उफनती नदी समान हैं
जिसका कोई गंतव्य ही नहीं है
कोई सीमा नहीं कोई बंधन नहीं है
अपनी ही तान अपनी वृति और
अपने ही रस में लीन हैं अनन्त हैं
मेरे सपनों में एकांत की अनुभूति है
यथार्थ के सत्य की पीड़ा भी है
मेरा मन मानसरोवर समान है
मुझे संवेदना द्वारा मुझसे जोड़ता है
मेरी स्मृतियों का अवशेष हैं मेरे सपने
@मीना गुलियानी
होठों पे थरथराते हैं बिन कहे रह जाते हैं
मेरे सपनों में इंद्रधनुष रंग भरता है
बादल भी कूची सा बन बिखरता है
मैं फूलों से रंग बिरंगे रंग चुनती हूँ
उनसे सपनों का ताना बाना बुनती हूँ
कभी चम्पा चमेली जूही का फूल मैं
बनाती हूँ ,उन्हें देख देख हर्षाती हूँ
मलयानिल के झोंके सुगंध भरते हैं
हरी दूब का बिछौना बनता है मेरा
मेरे सपनों में प्रकृति का है पहरा
धरा से आकाश तक हिंडोला मेरा
चन्द्रमा की किरणें आके झुलाती हैं
शीतल बयार लोरी मुझे सुनाती है
तारों की चूनर चन्द्रमा का टीका
पहन इठलाती हूँ झूम जाती हूँ
जुगनू उजाला करते हैं राहों में
कभी जलते बुझते हैं वीरानों में
मेरे सपने उफनती नदी समान हैं
जिसका कोई गंतव्य ही नहीं है
कोई सीमा नहीं कोई बंधन नहीं है
अपनी ही तान अपनी वृति और
अपने ही रस में लीन हैं अनन्त हैं
मेरे सपनों में एकांत की अनुभूति है
यथार्थ के सत्य की पीड़ा भी है
मेरा मन मानसरोवर समान है
मुझे संवेदना द्वारा मुझसे जोड़ता है
मेरी स्मृतियों का अवशेष हैं मेरे सपने
@मीना गुलियानी
बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंवाह्ह....लाज़वाब मीना जी👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर कविता आदरणीय मीना जी
जवाब देंहटाएंसादर
सपनो मे इन्द्रधनुषी रंग...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
वाह!!!