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सोमवार, 20 नवंबर 2017

कोशिश कर रहा हूँ मैं

तेरे साथ मेरे हमदम हमेशा रहा हूँ मैं
मुझे जिस तरह से चाहा वैसा रहा हूँ मैं

तेरे सर पे धूप आई तो मैं पेड़ बन गया
तेरी जिंदगी में कोई वजह रहा हूँ मैं

मेरे दिल पे हाथ रखके बेबसी को समझो
मैं इधर से बना तो उधर ढह रहा हूँ मैं

तू आगे बढ़ गई तो यहीं पे रुक गया
तू सागर बनी कतरा बन रहा हूँ मैं

चट्टानों पे चढ़ा तो पाँव की छाप रह गई 
किन रास्तों से तेरे साथ गुज़र रहा हूँ मैं

ग़म से निज़ात पाने की सूरत नहीं रही
 निजात पाने की कोशिश कर रहा हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

11 टिप्‍पणियां:

  1. शिवाष्टकम--
    1/8-जो कारण के भी परम कारण हैं और आग की लपटों की तरह तथा पीली आँखों वाले हैं .जिन्होंने सर्पराज आदि के कुंडल पहने हैं.जो ब्रह्मा और विष्णु को भी वर देने वाले हैं.मैं उन शंकरजी को प्रणाम करता हूँ—आदिशंकराचार्य-प्रस्तुति—अशोक


    4/८--लटकती हुई पिन्ग्ल्वर्ण जटाओं के कारण मुकुट धारण करने से जो य्त्क्त जान पड़ते हैं,तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण जो अति विकट और मनोहर प्रतीत होते हैं, जो व्याघ्र चर्म धारण किये हुए हैं,अति मनोहर हैं,तीनों लोकों के अधीश्वर भी जिनके चरणों में झुकते हैं,उन श्रीशंकर को मैं प्रणाम करता हूँ--शिवाष्टकम--प्रस्तुती--अशोक
    5/8—दक्ष प्रजापति के महायज को ध्वंस करनेवाले,महान त्रिपुरासुर को शीघ्र मार डालनेवाले,दर्पयुक्त ब्रह्मा के सिर को छेद डालने वाले,योगस्वरूप,योग द्वारा नमस्कार किये जाने वाले शिव को मैं नमस्कार करता हूँ
    ६/८-जो कल्प कल्प नें संसार रचना का परिवर्तन करनेवाले हैं जो राक्षस,पिशाच और सिद्ध गणों से घिरे रहते हैं,सिद्ध,सर्प,पिशाच ,ग्रह्गण और इन्द्रादि से सेवित हैं,जो बाघ का चर्म धारण किये हुए हैं, उन श्रीशंकरजी को मैं नमस्कार करता हूँ.
    ७/८-भस्म रुपी अंगराग से जिन्होंने अपने रूप को मनोहर बनाया है ,जो अति शांत और सुंदर वन का आश्रय करनेवालों के आश्रित हैं.जो पार्वतीजी के कटाक्ष की और जो बांकी चितवन से निहार रहे हैं और जिनका रंग गाय के दूध की तरह सफेद है,उन श्रीशंकरजी को मैं नमस्कार करता हूँ.
    ८/८—जो वरुण और पवन से सेवित हैं.यज और अग्निहोत्र के धुंए में जिनका निवास है,ऋकसाम aadiआदि वेद और मुनिजन जिनकी स्तुति करते हैं. उन नन्दीश्वर पूजित गो ओं का पालन करनेवाले महादेवजी को मैं नमस्कार करता हूँ
    ९- जो शिव के समीप इस पुण्य शिवाष्टकम मन्त्र का पाठ करता है,वह शिवलोक को प्राप्त करके शिव के साथ आनंद को प्राप्त करता है-आदि शंकराचार्य
    प्रस्तुति-अशोक

    ३/८--जो स्वच्छ पद्म प्राग मणीके कुण्डलों से किरणों की वर्ष करनेवाले,अगरु और बहुत से चन्दन से अर्चित और भस्म,प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित हैं,ऐसे नीले कमल वाले गले वाले शिव को नमस्कार है
    2/8--शोभायमान और निर्मल चन्द्रकला और सर्प ही जोंके आभुष्ण हैं ,गिरिजाकुमारी अपने मुख से जिनके लोचनों का चुम्बन करती हैं.कैलाश एवं महेंद्रगिरी जिनके निवासस्थान हैं और जो तीनों लो,कोण के दुःख को दूर करने वाले हैं.उन श्री शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ--आदि शंकराचार्य३

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 26 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. मैं इधर से बना तो उधर ढह रहा हूँ मैं....
    बहुत ही खूषसूरत पंक्ति। जीवन में पूर्ण कोई नहीं बस सभी पूर्णता प्रप्ति की कोशिश में लगे हैं। पश्चाताप किस बात का।

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  4. आप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
    तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर

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