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बुधवार, 8 नवंबर 2017

आशा हम ऐसी जगायें

सुरम्य सी है धरा
नीला नीला है गगन
हवाएँ चली मंद मंद
पुलकित है मन उपवन

आओ मिलके ख़ुशी बाँटे
दुःख को दूर भगाएँ
ऐसे करें हम काम
दीप नए हम जलाएँ

बुझते हुए चिराग़ों को
 आज हम जगमगायें
कोई कोना न रहे अछूता
सबको एक पंक्ति में लायें

हर अनाथ बेसहारा को
आज हम गले लगायें
उनकी मुस्कुराहट को
आज फिर लौटाके लायें

धरती पे मानवता बसे
ऐसा कुछ करके दिखाएं
प्रेम भरा हर दिल हो
आशा हम ऐसी जगायें
@मीना गुलियानी

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