यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 6 मई 2015

गुरुदेव के भजन-210 (Gurudev Ke Bhajan210)




जाके आता रहा आके जाता रहा यूं ही चक्कर चौरासी के खाता रहा 

खेल में तेरी बचपन कहानी गई 
जोश में होश खोकर जवानी गई 
बाद में ये दिया तेल के बिन दिया टिमटिमाता रहा 

उम्र का ये सफर खत्म होने लगा 
बैठ मंजिल के नज़दीक रोने लगा 
फिर क्यों पगले मन ये सांसो का धन क्यों लुटाता रहा 

घर के साथी व् सब हाथी घोड़े यहाँ 
और नोटों के बंडल जो जोड़े यहाँ 
छोड़ सामान सब हाथ मल मल के तब तिलमिलाता रहा 



_________________________****____________________________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें