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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

न फिर लौटकर आएगा

वक्त कैसा भी हो वो गुज़र जाएगा
दिन में सूरज उगा शाम को ढल जाएगा

तू क्यों  मायूस होता है बशर
इक दिन अहमियत पे उतर आएगा

 फितरत बदली है फ़िज़ा ने अभी
ग़म  न कर पल ये भी निकल जाएगा

खौफ न कर हौंसला ज़रा तू रख
क़शमक़श में  उलझ मत पिछड़ जाएगा

आज़मा किस्मत खिला ये चमन
वक्त गुज़रा गर न फिर लौटकर आएगा
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

वाणी मूक न होने की

उठो मनुज  पुत्रो अब जागो घड़ी नहीं ये  सोने की
तुम पर टिकी हैं  निगाहें आशाओं के पूरे होने की

तुममें सृजन शक्ति है कण कण में  भण्डार भरा
जीवन को तुम पहचानो देश है किस  मोड़ खड़ा
मोड़ दो इसकी धारा तुम घड़ी नहीं ये खोने की

सबको इस संसार में केवल स्वार्थ नज़र ही आता है
कैसे सुखी बने ये मानव ध्यान नहीं ये आता है
तुममें है क्षमता जगाओ हिम्मत मानव होने की

कैसी दुष्प्रवृति की दलदल में फँसी है नूतन पीढ़ी
सुगम बनाओ प्रगति पथ बनाओ इक ऐसी सीढी
संस्कृति का इतिहास बदलो वाणी मूक न होने की
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

आंखे बंद करता हूँ

मै अनगिनत बातों को सोचता हूँ
शाम को तन्हाई में जब जिंदगी
खामोश महासागर सा सफर करती है
लाल गुलाबी  तन्हा रात की धुन तरह
खूबसूरत यादों के बीच नृत्य करती है
रौशनी की  जगमगाहट बज्म बनती है
नए सपनों में चुपचाप ढल जाती है
तब मेरे पाँव रेत में धंस जाते हैं
गीत बूंदें बनकर होले से बरसते हैं
लगता है कोई यति समाधि में लीन हो
खुद को भूलने के लिए आंखे बंद करता हूँ
@मीना गुलियानी  

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

इबारत लिख न पायेगी

कभी जब गुजरोगे इस राह से तन्हाई में
ये राहें फिर से तुम्हें पुकारेंगी
गुलशन जो उजड़ गया ख़िज़ाओ से
ये बहारें फिर से उसे निखारेंगी

मन भटकेगा तेरा यूँ ही बादलों की तरह
ये घटायें तेरे गेसुओं को सँवारेंगीं
चाँद तारों ने लगाया हजूम सा जानिब
यादें तुझे रात भर जगायेंगी

यादें जब रह रह कर तड़पाएंगी
बिजलियाँ आशियाँ को जलाएंगी
सदमे से चौंककर न उठना तुम
स्याही भरी कलम इबारत लिख न पायेगी
@मीना गुलियानी 

जिंदगी मौत के करीब है

 यहाँ के नज़ारे कितने अजीब हैं
लगता है वक्त ही कमनसीब है

जिंदगी यहाँ  की कितनी  वीरान है
आती जाती साँसे कितनी ज़रीब हैं

मिलने जुलने के सिलसिले भी खत्म हुए
रफीक थे जो कभी अब बने रकीब हैं

सारे आशियाने हमारे उजड़ से गए
लगता है जिंदगी मौत के करीब है
@मीना गुलियानी



शनिवार, 22 अप्रैल 2017

झारी भी सूनी पड़ी है

आज केसर की क्यारी सूनी पड़ी है

वो गौरेया कहीं खो सी गई है

ढफ ढोल की धमाधम सूनी पड़ी है

आमों की मंजरियाँ झर सी गई हैं

गाँव की हिरनिया कहीं खोई पड़ी है

दिखते नहीं कोई टेसू के फूल भी अब

गुजरिया भी रास्ता भूले खड़ी है

कैसे गाऊं मै अब फागुन के गीत

रंगों की झारी भी सूनी पड़ी है
@मीना गुलियानी 

जिंदगी मेरी उधार है कहीं

मुझसे तुम कुछ सवाल न करो
मेरे पास उनका कुछ जवाब  नहीं

मेरी सांस, धड़कन मेरी कहती है
जैसे कि ये जिंदगी अब मेरी नहीं

तुम्हारी खामोशी मुझ पर इक कर्ज है
तेरी बातों का मेरे पास जवाब नहीं

अजनबी शहर है खामोशी तन्हाई  है
कहने को जिंदगी मेरी उधार है कहीं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

मुक्त गगन में अब विचरना है

आज भी स्त्री अपनी यंत्रणा से लड़ती है
मन ही मन पिंजरे से उड़ना चाहती है
अनंत विस्तार को पाना चाहती है
लेकिन सैयाद से भी कुछ डरती है

उसने उसके पर नोच डाले हैं
पाँवों में बेड़ियाँ लब पे ताले हैं
गहरे समुद्र की बात करती है
चीख इक बवंडर सी उभरती है

एक शतरंज का मोहरा बना दिया उसने
उसकी चालें वो सब समझती है
मन छटपटाता है आज़ादी पाने को
दिल की तमन्नाओं में रंग भरती है

कुछ कर गुज़रने की चाहत में
दिमाग में कैंची सी चलती है
जाल काटने की चाहत में
अपनी हसरतों से रोज़ लड़ती है

दुर्गा काली का रूप धारण कर
अब उस जाल से निकलना है
सैयाद के मंसूबों को कुचलना है
मुक्त गगन में अब विचरना है
@मीना गुलियानी 

मुझको फिर से बहका रही है

एक आवाज़ उस पार से आ रही है
मुझको होले से कुछ समझा रही है

दिन बीता ,शब गई,,मुझको भी सोना है
तेरी तस्वीर गीत गुनगुनाए जा रही है

जिंदगी की नई राह चुन ली थी मैंने
क्यों पुराने एहसास जगाए जा रही है

सूरज ने भी चाँद से जाने क्या कह दिया
रोशनी मुझको फिर से बहका रही है
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

कजरारी आँखे सांझ धानी

मचल रहा लहरा के झील का पानी
लिखी मैंने खुली किताब में कहानी

मैंने तय किया सफर हवाओं जैसा
सुनाए  मौसम गुज़रे पल की कहानी

मेरी गली से गुज़री तुम आज ऐसे
जैसे किसी राजा की तुम हो रानी

पड़े थे कभी अमिया की डाली पे झूले
याद आई कजरारी आँखे सांझ धानी
@मीना गुलियानी 

फितरत बदली नहीं जाती

साँस लेना भी जैसे कोई जुर्म है
जिन्दगी ऐसे तो जी नहीँ जाती

एक ठहरा हुआ सफर बन चुका हूँ मै
यह सड़क अब कहीं भी नहीं जाती

ये चाँदनी मुझे रात भर जलाती है
जाने क्यों अपने घर नहीं जाती

तुझे याद करने की आदत सी बन गई
दिल की हसरत निकाली  नहीं जाती

मै दुआओं में तुझको ही हमेशा माँगू
चाहकर भी फितरत बदली नहीं जाती
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

दीप जलाएँ प्राण का

आओ मिलकर हाथ बढ़ाकर संदेश दें ज्ञान का
मिटाकर अन्धकार हम  दीप जलाएँ प्राण का

जब तक चले साँस जीवन में
दीपक यूँ जलता ही रहे
खिले न जब तक मन उपवन
संवेदना से ये  पलता ही रहे
आओ मिलकर सदभावों से
दीप बने मिटाने को अज्ञान का

हर प्राणी जो भटक रहे हैं
सही मार्ग पर लाएँ हम
अंधविश्वास आडंबर के काँटों से
उनको आज बचाएँ हम
जीवन के तम को मिटाकर
नया प्रकाश भरें सद्ज्ञान का
@मीना गुलियानी



मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

सबको गले लगाएँ हम

आओ दीप जलाएँ हम अन्धकार मिटाएँ हम
नवज्योतस्ना को  फैलाके  कितना हर्षाएँ हम

जगाएँ हम जागृति की क्रांति
दूर हो जाए विश्व की भ्रान्ति
ऐसा पथ बतलाएँ हम

भेदभाव सब  दूर करें हम
आत्मभाव से उसे भरें हम
कुरीतियाँ दूर भगाएँ हम

सज्जनता को हम अपनाएँ
दुर्जनता को दूर भगाएँ
सबको गले लगाएँ हम
@मीना गुलियानी


शनिवार, 8 अप्रैल 2017

विश्वास और प्रेम से रहना

मैंने सीखा है जीवन से हर पल ही हँसते रहना
चाहे कितने दुःख आएँ चुपचाप ही सहते रहना

न जान पायेगा कोई ,है कितनी मन में पीड़ा
हँसते हुए इस  जीवन में ,करती है चिंता क्रीड़ा

मेरी आँखों में तो हरदम, प्यासा सागर लहराए
जो भेद छुपे मेरे मन में, कैसे कोई बतलाये

मेरे जीवन में आशा आलोकित हर पल रहती
मेरे असफल होने पर भी कभी न तिरोहित होती

मेरे साथी से मुझको मिलता उल्लास का गहना
मैंने पीड़ा से सीखा विश्वास और प्रेम से रहना 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

माता की भेंट --10

तर्ज़ ----पिछवाड़े बुड्ढा खांसदा 

खोलो ज़रा भवना दा द्वार    ------ माँ 
-जय अम्बे जय अम्बे दीवाने तेरे बोलदे 

तेरियां उडीकां विच अखाँ गइयाँ पक माँ 
कदे ता दयाल होके बच्यां नूँ तक माँ 
करदे हाँ असी इन्तज़ार ---माँ ---जय अम्बे 

बच्यां तों दस ज़रा होया की कसूर माँ 
नोहां नालों मॉस अज होया किवें दूर माँ 
बागाँ कोलों रुसी ऐ बहार ---माँ ---जय अम्बे 

मावां बिना पुत्रां नूँ कोई वी न झलदा 
ताइयों ता जहान सारा बुआ तेरा मलदा 
लावें तू डुबदे नूँ पार ----माँ -----जय अम्बे 

भगतां ने रखियाँ माँ तेरे उते डोरियां 
तकदे ने जिवें तके चन नूँ चकोरियॉ 
दर खड़े पलड़ा पसार --माँ------जय अम्बे 
@मीना गुलियानी 


सोमवार, 3 अप्रैल 2017

माता की भेंट ---9

तर्ज़ ------रमैया वस्ता वैया 

नाम जब तेरा लिया ध्यान जब तेरा किया 
तूने दुःख दूर किया 

जग  ने तो माँ ठुकराया मुझे 
तूने ही तो माँ अपनाया मुझे 
दुनिया ने तो भरमाया मुझे 
तूने ही माँ सबसे छुड़ाया मुझे 
दिल तुझे याद करे ,माँ फरियाद करे --------तूने दुःख 

मोह के जाल में फँसके जंजाल में 
घबराके माता पुकारा तुझे 
दिल मेरा माता पुकारे तुझे 
तेरे बिन कौन पार उतारे मुझे 
जाना न दूर कहीँ ,छोड़के मुझको कहीँ -------तूने दुःख 

तेरी कृपा का सहारा मिला 
डूबती नैया को किनारा मिला 
तुझसे दया की जो भीख मिली 
माँ अंधे को जैसे तारा मिला 
कैसे मैं दूर रहूँ ,क्यों मैं गम को सहूँ----------तूने दुःख 

रविवार, 2 अप्रैल 2017

माता की भेंट --8

तर्ज़ --ऐ रात के मुसाफिर चन्दा ज़रा बता दे 

हे अम्बिके भवानी दर्शन मुझे दिखाओ 
अन्धकार ने है घेरा ज्योति मुझे दिखाओ 

मैया तेरे ही दर का मुझको तो इक सहारा 
नैया भँवर में डोले सूझे नहीँ किनारा 
मंझधार से निकालो नैया मेरी बचाओ 

लाखों को तूने तारा भव पार है उतारा 
 बतलाओ मेरी माता मुझको है क्यों बिसारा 
बच्चा तेरा हूँ माता मुझको गले लगाओ 

सूनी हैं मेरी राहें आँसू भरी निगाहें 
बोझिल हैं मेरी साँसे दुःख कैसे हम सुनाएं 
गम आज सारे  मेरे मैया तुम्हीं मिटाओ 

तेरा नाम सुनके आया जग का हूँ माँ सताया 
मुझको गले लगालो तेरी शरण हूँ आया 
रास्ते विकट हैं मैया अज्ञान को मिटाओ 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

माता की भेंट --7

तर्ज --तुझे सूरज कहूँ या चन्दा

मेरी मैया मेरा तुझ बिन दूजा न और सहारा
मेरी नाव भँवर में डोले माँ सूझे नहीँ किनारा

तुम आके पर लगाओ माँ आप ही जान बचाओ
,मुझे पार  करो इस भव से नैया को पार लगाओ
माँ तेरे भरोसे पर ही मैंने जीवन को है गुज़ारा

माँ मैंने यही सुना है तू विपदाओं को मिटाती
माँ सबके दुखड़े हरके रोतों को तू है हँसाती
मेरी भी विनती सुन लो इस जग से मैं तो हारा

तुम अर्ज सुनो माँ मेरी सुनलो मत करना देरी
माँ शेर सवारी करके रखना तू लाज मेरी
तेरा ही सहारा लेकर माँ छोड़ दिया जग सारा
@मीना गुलियानी