आज केसर की क्यारी सूनी पड़ी है
वो गौरेया कहीं खो सी गई है
ढफ ढोल की धमाधम सूनी पड़ी है
आमों की मंजरियाँ झर सी गई हैं
गाँव की हिरनिया कहीं खोई पड़ी है
दिखते नहीं कोई टेसू के फूल भी अब
गुजरिया भी रास्ता भूले खड़ी है
कैसे गाऊं मै अब फागुन के गीत
रंगों की झारी भी सूनी पड़ी है
@मीना गुलियानी
वो गौरेया कहीं खो सी गई है
ढफ ढोल की धमाधम सूनी पड़ी है
आमों की मंजरियाँ झर सी गई हैं
गाँव की हिरनिया कहीं खोई पड़ी है
दिखते नहीं कोई टेसू के फूल भी अब
गुजरिया भी रास्ता भूले खड़ी है
कैसे गाऊं मै अब फागुन के गीत
रंगों की झारी भी सूनी पड़ी है
@मीना गुलियानी
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