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सोमवार, 24 अप्रैल 2017

इबारत लिख न पायेगी

कभी जब गुजरोगे इस राह से तन्हाई में
ये राहें फिर से तुम्हें पुकारेंगी
गुलशन जो उजड़ गया ख़िज़ाओ से
ये बहारें फिर से उसे निखारेंगी

मन भटकेगा तेरा यूँ ही बादलों की तरह
ये घटायें तेरे गेसुओं को सँवारेंगीं
चाँद तारों ने लगाया हजूम सा जानिब
यादें तुझे रात भर जगायेंगी

यादें जब रह रह कर तड़पाएंगी
बिजलियाँ आशियाँ को जलाएंगी
सदमे से चौंककर न उठना तुम
स्याही भरी कलम इबारत लिख न पायेगी
@मीना गुलियानी 

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