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शनिवार, 17 नवंबर 2018

बाग़ सारा मिल गया

मेरी उम्मीद से बढ़के था करम तेरा हुआ
तलब बूँद की थी और दरिया मिल गया

जब रहमत तेरी मिली मौज कश्ती बन गई
डूबने वाले को तिनके का सहारा मिल गया

झड़ गए वो सूखे पत्ते पेड़ सब्ज़ बन गया
जितना उसका लुटा उससे ज्यादा मिल गया

अब बाकी कहने को बचा क्या चैन मिल गया
फूल हाथ आया समझो बाग़ सारा मिल गया
@मीना गुलियानी 

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