कैसा है ये प्रेम का बन्धन
जिसमे बंध गया आज मेरा मन
जो पहले मुक्त गगन में
पंछी बन विचरता फिरता था
अब एक पिंजरे में कैद हो गया
लेकिन ये कैद भी न मालूम
क्यों सुखद महसूस होती है
पंछी को पिंजरे से मोह हो गया
कितना विरोधाभास है
किन्तु ये सच है क्योंकि
जिस मंजिल की उसे तलाश थी
वो मिल गई है
और अपने पाँव में खुद
उसने जंजीरें बांध ली हैं
@मीना गुलियानी
जिसमे बंध गया आज मेरा मन
जो पहले मुक्त गगन में
पंछी बन विचरता फिरता था
अब एक पिंजरे में कैद हो गया
लेकिन ये कैद भी न मालूम
क्यों सुखद महसूस होती है
पंछी को पिंजरे से मोह हो गया
कितना विरोधाभास है
किन्तु ये सच है क्योंकि
जिस मंजिल की उसे तलाश थी
वो मिल गई है
और अपने पाँव में खुद
उसने जंजीरें बांध ली हैं
@मीना गुलियानी
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