विधाता ने रचा
उसे प्रेम से
कल्पना से
कामना से
फ़ुरसत में
वह मुझमें है
उसकी हँसी
कुसुमित होती है
पलाश में
अमलतास में
हेमंत में
वसन्त में
बढ़ती जाती है
अगाध की ओर
@मीना गुलियानी
उसे प्रेम से
कल्पना से
कामना से
फ़ुरसत में
वह मुझमें है
उसकी हँसी
कुसुमित होती है
पलाश में
अमलतास में
हेमंत में
वसन्त में
बढ़ती जाती है
अगाध की ओर
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें