यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 3 नवंबर 2018

मेरे जख्मों पे तुम मरहम

ज़माना दिए जा रहा ग़म पे ग़म
संभालो ऐ माँ न निकल जाए दम

सताया गया हूँ मैं संसार से
उठा लो मुझे ज़रा प्यार से
बड़ा होगा मुझपे तुम्हारा करम

मेरी नाव है डूबती जा रही
किनारा कहीं भी नहीं पा रही
खत्म होने को है मेरा ये जन्म

मुसीबत में हूँ माँ मैं लाचार हूँ
तुम्हारी दया का तलबगार हूँ
उठाले मुझे गोद में कम से कम

मेरा दिल मैया आज घायल हुआ
नहीं रास आई कोई भी दवा
लगाओ मेरे जख्मों पे तुम मरहम
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें