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सोमवार, 5 नवंबर 2018

न जाने तुम कब आओगे

सहर अब शाम बन चुकी
न जाने तुम कब आओगे
फ़िज़ा भी रंग बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे

सितारे न जाने कहाँ खो गए
नज़ारे सब खामोश क्यों हो गए
हवा भी अब तो बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे

शमा हर महफ़िल में जल गई
ये रंगत पल भर में बदल गई
धुएँ में शब ये ढल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
@मीना गुलियानी 

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह खूब एक पुराना गीत याद आ गया मीना जी ।
    सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे ...
    बहुत सुंदर!

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  2. शमा हर महफ़िल में जल गई
    ये रंगत पल भर में बदल गई
    धुएँ में शब ये ढल चुकी
    न जाने तुम कब आओगे!!!!!!!!!
    क्या बात है मीना जी | जब इन्तजार लम्बा हो जाता है तो कयामत गुजरती है | सुंदर मर्मस्पर्शी रचना | ज्योति पर्व की बधाई स्वीकार करें |

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 8 नवम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1210 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रेम पाती सी सुन्दर रचना ...
    दिल की पुकार जरूर पूरी होती है ... प्रेम-मई रचना ....

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