ऐसा कब्रिस्तान कहाँ है जहाँ नफरतों को दफनाया जाए
ईर्ष्या ,द्वेष ,वैर भाव को हर दिल से कैसे मिटाया जाए
हर कोई कुदरत के तमाशे पे ही नाचते रहते हैं
तन्हाई की महफ़िल ख़ामोशी के घुंघरू बजते हैं
कैसे इस बेचैनी को हर मन से अब हटाया जाए
वैसे तो जीने को तो हम यूँ भी जिए जाते हैं
बन्द कर होठों को अश्कों को पिए जाते हैं
लम्हे जो गुज़रे नफरतों में कैसे भुलाया जाए
कभी तो कोई दिन ऐसा आये जो सुकूँ से भरा हो
कोई तो दिल मिले ऐसा जो मुहब्बत से भरा हों
सुकूँ दिल को मिले कोई ऐसा मकां बनाया जाए
@मीना गुलियानी
ईर्ष्या ,द्वेष ,वैर भाव को हर दिल से कैसे मिटाया जाए
हर कोई कुदरत के तमाशे पे ही नाचते रहते हैं
तन्हाई की महफ़िल ख़ामोशी के घुंघरू बजते हैं
कैसे इस बेचैनी को हर मन से अब हटाया जाए
वैसे तो जीने को तो हम यूँ भी जिए जाते हैं
बन्द कर होठों को अश्कों को पिए जाते हैं
लम्हे जो गुज़रे नफरतों में कैसे भुलाया जाए
कभी तो कोई दिन ऐसा आये जो सुकूँ से भरा हो
कोई तो दिल मिले ऐसा जो मुहब्बत से भरा हों
सुकूँ दिल को मिले कोई ऐसा मकां बनाया जाए
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें