तपती दुपहरी में वो जर्जर काया
लाठी टेकता वो मुझे नज़र आया
झुर्रियों का बोझ भी झेल न पाया
इतनी अधिक क्षीण थी उसकी काया
विधाता ने जीवन का मोह उपजाया
मोम के पुतले सी पिघलती काया
न थी एक भी तरु की वहाँ छाया
प्राणों का मात्र स्पन्दन ही हो पाया
पल में मिट्टी में विलीन हुई वो काया
चार व्यक्तियों ने उसे काँधे पे उठाया
निष्प्राण जीव ने चिरविश्राम था पाया
जीवन का इतना पन्ना लिखवाके लाया
@मीना गुलियानी
लाठी टेकता वो मुझे नज़र आया
झुर्रियों का बोझ भी झेल न पाया
इतनी अधिक क्षीण थी उसकी काया
विधाता ने जीवन का मोह उपजाया
मोम के पुतले सी पिघलती काया
न थी एक भी तरु की वहाँ छाया
प्राणों का मात्र स्पन्दन ही हो पाया
पल में मिट्टी में विलीन हुई वो काया
चार व्यक्तियों ने उसे काँधे पे उठाया
निष्प्राण जीव ने चिरविश्राम था पाया
जीवन का इतना पन्ना लिखवाके लाया
@मीना गुलियानी
भावुक जीवन यात्रा... आभार
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