मेरे अन्तर की पीड़ा को तुम क्या जान पाओगे
मेरे भावों की व्याकुलता को तुम क्या समझ पाओगे
मेरे जिस्म के अंदर एक भावुक मन भी है
जो नहीँ रहना चाहता किसी के भी पराधीन
इन सभी सम्बन्धों से ऊपर उठकर चाहता है जीना
वो जिंदगी जो कि शायद दुश्वार लगेगी तुमको
एक एहसास हमेशा मुझे कचोटता है क्या यही जीवन है
सुबह से शाम, शाम से रात, रात से फिर दिन
एक ही कल्पना, यही समरूपता , न भावों का स्पंदन
वही आशा, वितृष्णा भरी जिंदगी क्या जीना
जहाँ न शब्दों की है कोई परिभाषा ,सिर्फ निराशा
मैं चाहती हूँ एक नया संसार यहाँ बसा दूँ
हर तरफ खुले आकाश का शामियाना हो
चाँद तारों को उसमें सजा दूँ ,दीपक सजा दूँ
जहाँ बादलों का झुरमुट अठखेलियाँ करता हो
लहरों भर समंदर सा मन मचलता हो
नए नए उद्गार मन में पनपते हों
नए नए पत्तों से गान हवा से झरते हों
कोयलिया जहाँ मीठे बोल सुनाती हो
तितली जहाँ पँख फैलाती उड़ती इतराती हो
वेदना का जहाँ नामोनिशान न हो
वहीँ पर बसा मेरे सपनों का गाँव हो
@मीना गुलियानी
मेरे भावों की व्याकुलता को तुम क्या समझ पाओगे
मेरे जिस्म के अंदर एक भावुक मन भी है
जो नहीँ रहना चाहता किसी के भी पराधीन
इन सभी सम्बन्धों से ऊपर उठकर चाहता है जीना
वो जिंदगी जो कि शायद दुश्वार लगेगी तुमको
एक एहसास हमेशा मुझे कचोटता है क्या यही जीवन है
सुबह से शाम, शाम से रात, रात से फिर दिन
एक ही कल्पना, यही समरूपता , न भावों का स्पंदन
वही आशा, वितृष्णा भरी जिंदगी क्या जीना
जहाँ न शब्दों की है कोई परिभाषा ,सिर्फ निराशा
मैं चाहती हूँ एक नया संसार यहाँ बसा दूँ
हर तरफ खुले आकाश का शामियाना हो
चाँद तारों को उसमें सजा दूँ ,दीपक सजा दूँ
जहाँ बादलों का झुरमुट अठखेलियाँ करता हो
लहरों भर समंदर सा मन मचलता हो
नए नए उद्गार मन में पनपते हों
नए नए पत्तों से गान हवा से झरते हों
कोयलिया जहाँ मीठे बोल सुनाती हो
तितली जहाँ पँख फैलाती उड़ती इतराती हो
वेदना का जहाँ नामोनिशान न हो
वहीँ पर बसा मेरे सपनों का गाँव हो
Hello,
जवाब देंहटाएंMy name is Jeff and I noticed you question about not being able to share with google communities with blogger. Did you figure this out?
I'm having the same problem.
Any help would be appreciated.
My email: mrjeffduncan (at) g mail (dot) com