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बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

अंगारों को फिर कैसे हम बुझाएंगे

मेरे दिल के जख्म कुछ हरे से हैं
न कुरेदो उन्हें रिसने लग जायेंगे
गमों से इतने मुझे पाले हैं पड़े
लगता है छाले वो सारे फूट जायेंगे

                       टूटते रिश्तों में भी मौजूदगी का एहसास है
                       दिल की टीस न कम होगी अरमां रह जायेंगे
                       भावनाओं का सैलाब है आँसू ढलक जाएंगे
                       सिसकते हुए अरमान लिए तेरी गली आएंगे

सीपी में बन्द अरमानों को किया हमने
नज़ारे को भी हम सामने तेरे लेके आएंगे
दिल पे जब तिश्नगी की चोट लगी
जलते अंगारों को फिर कैसे हम बुझाएंगे
@मीना गुलियानी 

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