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सोमवार, 25 जून 2018

ये रिश्ता कैसा है

छलकते हुए अश्कों ने बताया दर्द कैसा है
उसकी बेरुखी ने समझाया हमदर्द कैसा है
 घमण्ड ने जताया उसके पास  खूब पैसा है
व्यवहार ने बताया उसका परिवार कैसा है
मीठी वाणी से पता चला  वो इंसान कैसा है
तल्खियत से पता चला ज्ञान कितना है
स्पर्श से पता चला कि वो व्यक्ति कैसा है
वक्त ने बता दिया कि ये रिश्ता कैसा है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 24 जून 2018

ऐसी मिली सौगात है

जाने क्या बात है , नींद कोसों दूर है
           ढलने को रात है

उसने क्या है कहा जो था मैंने सुना
अनकही  बातों का सिलसिला चला
बातों बातों में ढलने लगा जो समां
अब शुरू हो गई फिर वही बात है

तूने जो भी कहा  वो अधूरा ही कहा
वादियों में गूँज उठी इसकी सदा
चुपके चुपके से कह गई कान में
आज होने लगी फिर वो बरसात है

फूल पत्ते चिनारों के कहने लगे
धड़कनें बनके दिल में रहने लगे
खामोशी बन गई जुबां आज तो
खुशियों की ऐसी मिली सौगात है
@मीना गुलियानी

शनिवार, 23 जून 2018

तमन्ना निकल जायेगी

 तेरे चुप रहने से जां चली जायेगी
मुस्कुराओगे तो जां में जां आयेगी

गेसुओं में न मुखड़ा छिपाया करो
थोड़ा थोड़ा सा यूँ मुस्कुराया करो
दिल की बुझती शमा भी जल जायेगी

मुझसे नाराज़ हो माफ़ कर देना तुम
हूँ खतावार मुझको सजा देना तुम
रूठने से घटा ये बरस जायेगी

तेरे नाराज़ होने से बदला समां
दिल की बेताबियों से उठता धुआँ
खुश रो हर तमन्ना निकल जायेगी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 22 जून 2018

अंत भूलता नहीं

मेहनतकश इंसान कभी घबराता ही नहीं
ज़मीं हो या आसमां थर्राता वो नहीं

सर झुकाकर रहना सीखा है उसने
कभी गुरूर से गर्दन तानता वो नहीं

जानता है वक्त लगता बड़ा होने में
इस पर भी हार मानता ही वो नहीं

उसकी मेहनत जब भी रंग लाती है
बावजूद इसके भी इतराता वो नहीं

अपनी हैसियत का खूब पता है उसे
माटी में मिलना है अंत भूलता नहीं
@मीना गुलियानी 

मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं

मेरे मन में भावनाओं का समुद्र
हर समय उमड़ता ही रहता है
इस ज्वारभाटे को रोका नहीं जा सकता
रोकने पर अश्रुधारा के रूप में ये
प्रवाहित होने लग जाता है
इसके बहाव  पर लगाम लगाना
नामुमकिन है , टेढ़ी खीर है
वैसे तो इसके अविरल रूप से
प्रवाहित होने से मन शांत होता है
नैराश्य धुल  जाता है चैतन्य
जागृत होने पर आप जिस ओर चाहो
इसे पुन: आकृष्ट कर  सकते हो
आध्यात्मिकता ,वैराग्य,भक्ति
कहीं भी मोड़ सकते हो
जीवन की पृष्ठभूमि पर एक
नई व्याख्या लिख सकते हैं
मन के भीतर दीपक प्रज्वलित करके
गहन अन्धकार मिटा सकते हैं
मन को साधकर कुण्डलिनी को
जागृत करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं
@मीना गुलियानी

बुधवार, 20 जून 2018

कोई गुनगुनाता है

अरे पपीहे तू क्यों इतना मुझे रुलाता है

जुबां पे तेरी पी पी नाम क्यों आता है
सदा ऐ ग़म की किसको तू सुनाता है

जो पहले से दुखी हो क्यों उसे सताता है
जो खुद ही जल रहा हो क्यों जलाता है

तू ये रोज़ आँसू किसके लिए बहाता है
जो सुनता नहीं क्यों दर्द उसे बताता है

चला जा  यहाँ से मत बर्बाद कर जिंदगी
कारवाँ तेरी मुहब्बत का लुटा जाता है

बसा ले आशियाँ जहाँ मिले सुकूँ का निशाँ
बसाले बस्ती ख़ुशी से कोई गुनगुनाता है
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 19 जून 2018

दीपक बुझा न सके

दिल से हम तुम्हें भुला न सके

साथ आँखों ने हमारा तो दिया
आँसुओं ने सहारा हमें तो दिया
दाग ऐ दिल फिर भी मिटा न सके

चाँद में देखी है तेरी सूरत
रात बन गई एक मुसीबत
गम के बादल हम हटा न सके

आहों ने भी तो आग लगाई
आँसुओं ने बिजली गिराई
हम जले दीपक बुझा न सके
@मीना गुलियानी




सोमवार, 18 जून 2018

निश्छल हृदय से है

विश्वास है एक आस
भरोसा है एक अहसास
कुछ पाने का कुछ खोने का
क्षणिक भर छलना बन रहने का
तेरा ही संग पाने का तू मेरा है
इसकी अनुभूति ऐसी है जैसे
पंछी को परों से
भक्त को ईश्वर से
शिशु को माँ से
पत्ते को डाली से
शब्द को आवाज़ से
आवाज़ को संगीत से
संगीत को आराध्य देव से
यथार्थ को धरातल से
प्रेमी को निश्छल हृदय से है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 17 जून 2018

अपनी राह चल दिया

कल एक फूल ने पूछा मुझसे
तुम क्यों उदास चुपचाप हो
बोला तुम अपनी पीड़ा मुझसे कहो
यूँ न गुमसुम से तुम बैठे रहो
दिल है क्यों हैरान और पशेमान
किसने किया है तुम्हें परेशान
अपनी उलझनें बताओ तो ज़रा
क्यों खामोश रहते हो बताओ ज़रा
मैं चुपचाप सब सुनता ही रहा
अब मुझे लगा कोई मिल गया
ग़म हल्का करलूँ यकीं मिल गया
मैं चुपके से चला पगडंडी के पार
धीरे धीरे से आई वो ठंडी बयार
छूके मुझे होले से कानों में बोली
कुछ बातें मुझसे करो हमजोली
जाने क्या नशा सा छाने लगा
उसकी बातें सुन मुस्कुराने लगा
उसने हल्की सी की सरगोशियाँ
वादियों में मेरी गूँजी सिसकियाँ
मेरा सारा ग़म आँसुओं में ढल गया
मुस्कुरा के मैं अपनी राह चल दिया
@मीना गुलियानी

शनिवार, 16 जून 2018

,तेरी ये ओढ़नी

पिया मैंने ओढ़ली ,तेरी रंग भरी ओढ़नी

तूने प्यार से दीन्हि मुझको
रंग भी सारे दे दिए मुझको
भीग गई तेरे रंग में , भीगी ये ओढ़नी

पिया न फीका होवे रंग
ऐसो रंगो न होवे बदरंग
कसके चास लगाओ ,फीकी न होवे ओढ़नी

कितने जतन से ओढ़ूँ इसको
प्रेम से कितने सहेजूँ इसको
बार बार मुस्काऊँ पहनकर ,तेरी ये ओढ़नी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 15 जून 2018

छनकने लगी है

आने से तेरे जैसे बहार आ गई है
ख़्वाबों की दुनिया सजने लगी है

सवरने लगे फूलों के गुंचे भी अब 
हवा भी रुख अपना बदलने लगी है
खिली देखो सरसों जूही ,चमेली
 दिल की बगिया महकने लगी है

फूलों ने देखो बिछाई है चादर
उषा भी अपनी लाई है गागर
सूरज की लाली लगी है चमकने
गागर भी अब छलकने लगी है

हँसी शाम अब तो होने को आई
सितारों ने अपनी महफ़िल जमाई
चंदा गगन में लगा मुस्कुराने
शबनम भी देखो बहकने लगी है

रंगीन मौसम रुत भी जवां है
फूलों से महका ये गुलिस्तां है
मिले आज तुम हर अरमां जवां है
 पायल ख़ुशी से छनकने लगी है
@मीना गुलियानी




गुरुवार, 14 जून 2018

बहुत ख़ास हूँ मैं

सत्य क्या है पता नहीं
अभी तक उसकी तलाश में हूँ
धैर्य क्या है फिर भी शायद
उसके आस पास हूँ मैं
आकाश के तारों में नहीं
चन्द्रमा के दाग़ में हूँ
धरा के किसी छोर में  नहीं
न ही रवि के प्रकाश में हूँ मैं
पूर्णिमा की रात में नहीं
अमावस की रात में हूँ मैं
निर्जीव सन्नाटे में नहीं
न सजीव बात में हूँ मैं
न ही राधा के रास में
न ही उमा के लास्य में हूँ मैं
पर इस जगत में कहीं न कहीं
किसी के लिए बहुत ख़ास हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 13 जून 2018

खेलूं संग संग में

आज मैं तो उड़ती चलूँ मस्त पवन में
झूमूँ नाचूँ गाऊं मैं अपनी ही लगन में

जिया झूमे चुनरिया लहराए
सर से पल पल सरकती जाए
छू लूँ बादलों को मैं उड़के गगन में

मेरे संग संग चलती पुरवइया
मेरे गज़रे की लेके बलैया
मन मयूरा नाच उठा संग पवन में

ओढ़ूँ तारों की झिलमिल चुनरिया
चंदा देखे तो यूँ चमके बिजुरिया
आँख मिचौनी भी खेलूं संग संग में
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 12 जून 2018

वादियों में हो जाएँ ग़ुम

नदिया के पार चलो करलें बसेरा हम तुम 
ढूँढे हमें सारा जहाँ कहीं खो जाएँ हम तुम 

ठण्डा ठण्डा पानी यहाँ भँवरे  गुनगुनाते हैं 
फूल गुलिस्तां में तो सब खुशबु लुटाते हैं 
चलो यहीं खो जाएँ होश हो जाने दो ग़ुम 

मस्त मस्त मौसम है हवा मतवाली है 
दिल मेरा झूम रहा झूमे डाली डाली है 
कितना सुकूँ है यहाँ चलते रहें हम तुम 

न रुको तुम भी कहीं न रुकें हम भी कहीं 
बढ़ते रहें हम आगे न दिखे हद है कहीं 
दोनों थामें हाथों को वादियों में हो जाएँ ग़ुम 
@मीना गुलियानी 

ऐसा गुलिस्तां करदे

सबके दिलों में तू आज उजाला करदे
दूर दुनिया से नफरत का अँधेरा करदे

हर दिल में सदाकत की शमा रोशन हो
झूठ का शरारा भी हर दिल से दूर करदे

प्यार के फूल खिलें जिससे महके ये फ़िज़ा
न रहे दिल में नफरत के लिए बाकी जगह

न हो कोई दुश्मन न किसी से वैर यहाँ
हर तरफ अमन  का ही रहे नामोनिशां

सबके दामन को खुशियों के गुलों से भरदे
न कभी आये ख़िज़ा ऐसा गुलिस्तां करदे
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 11 जून 2018

गीतों की तान सुनाई

है  मौसम हँसता हँसता नहीं वक्त कभी भी रुकता
चलो सफर  पे बढ़े चलो ये रास्ता कभी न रुकता

मस्ती की बयार छाई तन मन की सुध है बिसारी
झूमे है हर इक पौधा  ,खिल गई हर इक क्यारी
सूरज की लाली छाई , हर कली कली मुस्काई
कोयल भी देखो है कूकी लगा बसंत ऋतु आई

बद्री भी देखो घिर आई चपला दामिनी चमकी
लेकर के नई चित्रकारी मीनाकारी है अंबर की
हंसों की टोली है आई गीतों की गूँजी शहनाई
अंबर ने अपनी मस्ती में गीतों की तान सुनाई
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 9 जून 2018

दिल मेरा दुआ करे

हर अरमान जिंदगी के तेरे हों पूरे
कोई भी सपने तेरे रहें न अधूरे

खुशियों का साया तुझ पर रहे मेहरबां
तुझको उस परवरदिगार की मिले पनाह

न हो कभी ख़ौफ़ कभी तुझे किसी का
 झोली मुरादों भरी बने आसरा किसी का

हर पल रहे जुनून तुझे दोस्ती का
रहे दूर तुझसे साया भी दुश्मनी का

खुदा का  हाथ हमेशा सिर पर तेरे रहे
तू सलामत रहे दिल मेरा दुआ करे
@मीना गुलियानी 

शुद्ध मन करो

भाग्य पाने के लिए
कुछ श्रम करो
लक्ष्य पाने के लिए
कुछ प्रण करो
ज्ञान पाने के लिए
भ्रमण करो
जीत पाने के लिए
पराक्रम करो
दीपक जलाने के लिए
शुद्ध मन करो
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 7 जून 2018

बह चले यह नयन निर्झर

आज फिर स्मृति तुम्हारी
क्यों सताती विकल होकर
उधर प्राची से उठे हैं
श्याम गहन संदेश लेकर
गए उठा पागल पपीहा
प्रणय के भूले फ़साने
बज उठे सुन मधुर रिमझिम
हृदय के कम्पित तराने
देख स्वनिल छवि तुम्हारी
बह चले यह नयन निर्झर
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 6 जून 2018

इसमें प्राणों के पाश बँधे

यह बंधन ही मुझको प्रियकर
निष्कृति जीवन गति रुक जाना
प्रियतम के प्रियतम बन्धन में
सुख मिलता मुझको मनमाना
चिर बन्धन ही है अमर मुक्ति
जिसमें धरती आकाश बँधे
बन्धन ही प्रेरक है गति का
इसमें प्राणों के पाश बँधे
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 5 जून 2018

है हँस रहा गगन

जग हँस रहा है आज   -    है हँस रहा गगन
सुरभित समीर कहती कलियों से तुम खिलो
लहरों चली चलो सागर से तुम जा मिलो
जीवन का सुख यही अन्तर का मृदु मिलन

चितवन किसी की भोली मन में समा गई
आकाश गंग सी इक रेखा बना गई
सुधियों के साथ जागे आँखों के यह सपन
जग हँस रहा है आज   -    है हँस रहा गगन
@मीना गुलियानी

सोमवार, 4 जून 2018

तुम्हीं पर वारा करूँ

बन पागल  चातक सा प्रिय मैं
नित आनन चन्द्र निहारा करूँ
नित नैनन नीर नवोदित से
तुम्हारे पद पदम् पखारा करूँ
अपने हिय आज बसा तुमको
नित आरती मञ्जु उतारा करूँ
अपनापन लीन तुम्हीं में करूँ
सर्वस्व तुम्हीं पर वारा करूँ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 1 जून 2018

किश्ती मैं पार लगा जाऊँ

या रब ! ये कैसी मजबूरी
दो साथी आज बिछुड़ते हैं
उखड़ी उखड़ी सी सांसे हैं
दिल में अरमान तड़पते हैं

खामोश निगाहों से मांझी
है देख रहा किश्ती जाती
तूफ़ान उमड़ता जाता है
आवाज़ न हमदम की आती


हमदम मेरे आवाज़ तो दो
तूफानों से टकरा जाऊँ
मिटते मिटते भी बस तेरी
किश्ती मैं पार लगा जाऊँ
@मीना गुलियानी