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रविवार, 24 जून 2018

ऐसी मिली सौगात है

जाने क्या बात है , नींद कोसों दूर है
           ढलने को रात है

उसने क्या है कहा जो था मैंने सुना
अनकही  बातों का सिलसिला चला
बातों बातों में ढलने लगा जो समां
अब शुरू हो गई फिर वही बात है

तूने जो भी कहा  वो अधूरा ही कहा
वादियों में गूँज उठी इसकी सदा
चुपके चुपके से कह गई कान में
आज होने लगी फिर वो बरसात है

फूल पत्ते चिनारों के कहने लगे
धड़कनें बनके दिल में रहने लगे
खामोशी बन गई जुबां आज तो
खुशियों की ऐसी मिली सौगात है
@मीना गुलियानी

3 टिप्‍पणियां:

  1. १.दुःख सुख तो आते जाते रहते हैं,
    हंस कर दुःख को सहना
    बहुत जरूरी है सुख दुःख में
    सदा एक सा रहना
    २. कठिनाई पर तुम मत रोना
    व्यर्थ ना अपने आंसू खोना
    डट कर करना मुकाबला इनका
    कायरता को मार भगाना
    हे,अर्जुन सुख –दुःख,गर्मी-सर्दी समय के साथ आते हैं, और चले जाते हैं.तू इनको सहन करना सीख –bhgvdgitaaभगवद गीता,-
    ३नाचे मन अब प्रसन्न हो कर
    बहे ज्ञान का सागर झर झर
    कर्म करें कुछ जग में ऐसे
    जिनसे सतत बहे जीवन का निर्झर (झरना)
    ४. उर्जा संरक्ष्ण से तुम
    सबल,स्वावलम्बी देश बनाना
    करना भविष्य धरती का सुरक्षित
    बढ़ कर पर्यावरण बचाना
    ५.. आत्मनिर्भर देश बने
    बढ़े आत्मसम्मान
    अमर रहे स्वतंत्रता इसकी
    बढे सभी का ज्ञान
    ६.बढे प्रतिष्ठा देश की
    हो सुरक्षित पर्यावरण
    आओ मिल कर हाथ बढायें
    करें ऊर्जा का संरक्षण

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  2. माँ दुर्गा से निवेदन
    सूख रहा जीवन का रस
    छूट रहा है धीरज सारा
    अन्ध्कार सब ओर घिरा हो
    सूझे न जब कोई किनारा
    तुम यह सब चुपचाप न देखो
    बरसा दो अमृत की धारा
    2 सुख स्वपन बने हों जब धूमिल
    जीवन करता हो छ्ल ही छल
    हों बंधन में निज प्राण बंधे
    और सब मुक्ति के प्रयास विफल
    किसी और द्वार पर ना जा कर पुकार करें
    ना और किसी का मांगें सहारा
    3 कब तक हम चुपचाप रहें
    और लिए अधूरी प्यास रहें
    अपने छोटे से आँचल में
    निराशा और अविश्वास लिए
    अब मिटें हमारे सारे गम
    मुसकाए फिर जीवन सारा
    4कर असत्य विदीर्ण
    सत्य प्रतिष्ठित तुम्ही करातीं
    देख तुम्हारा तेज
    कोटी कोटी सूर्यों की किरणें लजातीं
    माँ जीवन को मृत्यु पर
    विजय तुम्ही दिलवातीं
    नव रचनायें रच जगत का सरजन तुम्ही करातीं
    हे शब्द विचारतीत रुके अब जग का क्रंदन
    हे दयामयी जननी हम करें तुम्हारा वंदन
    ५ हे शुभ्र वसना माँ तुम ही सब कुछ करतीं
    हे दयामयी माता तुम जग की जड़ता हरतीं
    क्ल्याणकारी तत्व में तुम्ही शक्ति हो भरती
    जब चारों ओर हो जलथल जलथल
    प्राण प्यासे फिर भी तरसें
    अब तुम ही करो उपाय कि
    सूखे जीवन में रस बरसे
    छिपा कर अपने दुःख दर्द को
    जीना ही जिन्दगी का नाम है
    ले क्रर भगवान का सहारा
    विपरीत प्रिथितियों में आगे बढना
    ही हमारा काम है-अशोक

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