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गुरुवार, 14 जून 2018

बहुत ख़ास हूँ मैं

सत्य क्या है पता नहीं
अभी तक उसकी तलाश में हूँ
धैर्य क्या है फिर भी शायद
उसके आस पास हूँ मैं
आकाश के तारों में नहीं
चन्द्रमा के दाग़ में हूँ
धरा के किसी छोर में  नहीं
न ही रवि के प्रकाश में हूँ मैं
पूर्णिमा की रात में नहीं
अमावस की रात में हूँ मैं
निर्जीव सन्नाटे में नहीं
न सजीव बात में हूँ मैं
न ही राधा के रास में
न ही उमा के लास्य में हूँ मैं
पर इस जगत में कहीं न कहीं
किसी के लिए बहुत ख़ास हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

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