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शुक्रवार, 1 जून 2018

किश्ती मैं पार लगा जाऊँ

या रब ! ये कैसी मजबूरी
दो साथी आज बिछुड़ते हैं
उखड़ी उखड़ी सी सांसे हैं
दिल में अरमान तड़पते हैं

खामोश निगाहों से मांझी
है देख रहा किश्ती जाती
तूफ़ान उमड़ता जाता है
आवाज़ न हमदम की आती


हमदम मेरे आवाज़ तो दो
तूफानों से टकरा जाऊँ
मिटते मिटते भी बस तेरी
किश्ती मैं पार लगा जाऊँ
@मीना गुलियानी 

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