जब कभी मैं तन्हा होता हूँ
मेरे मन में अचानक ही
सोया दर्द जाग उठता है
जो मन के भीतर ही
रिसकर बहने लगता है
धीरे धीरे वो नसों में
बहते बहते धड़कन में
समाने लगता है फिर
वो शब्दों में ढलकर
निर्बाध गति से
प्रवाहित होने लगता है
भावना का समुद्र
मन में लहराने लगता है
कभी कभी लगता है
मन के सेतुबंध टूट जायेंगे
कभी कभी भावना आँखों से
अश्रुधारा बन छलकने लगती है
मन महासागर बन जाता है
जो अनन्त है और वह
भटकता है प्रवाह की खोज में
@मीना गुलियानी
मेरे मन में अचानक ही
सोया दर्द जाग उठता है
जो मन के भीतर ही
रिसकर बहने लगता है
धीरे धीरे वो नसों में
बहते बहते धड़कन में
समाने लगता है फिर
वो शब्दों में ढलकर
निर्बाध गति से
प्रवाहित होने लगता है
भावना का समुद्र
मन में लहराने लगता है
कभी कभी लगता है
मन के सेतुबंध टूट जायेंगे
कभी कभी भावना आँखों से
अश्रुधारा बन छलकने लगती है
मन महासागर बन जाता है
जो अनन्त है और वह
भटकता है प्रवाह की खोज में
@मीना गुलियानी
Superb lines
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर आदरणीया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदर्द भी नदी जैसा होता है ... खोज ही लेता है अपना रास्ता फिर चाहे शब्द बन कर ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचन है ...
Thanks all
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