आज मन के तराजू पर
अपनी आस्था को परखा
मन कुछ डांवाडोल रहा
चेतना ने उसका साहस बढ़ाया
वो फिर से कुछ दृढ़ हुआ
जिंदगी में दुःख सुख आते हैं
उनसे घबराना कैसा सामना करो
विधाता की ही दोनों रचना हैं
उनको समभाव से देखो और
उनका सम्मान करो
निर्विकार निर्विकल्प रहकर
मन का मंथन किया
हृदय कल्पद्रुम सा खिल उठा
भावना के ज्वार उठने लगे
मन में वीणा के तार बजे
सप्तसुर जगने लगे
कोयल कूकने लगी
मोर नाचने लगा पपीहा गाने लगा
ऐसा लगा मन में इंद्रधनुष खिल उठा
गगन धरा का मिलन हुआ
इड़ा पिंगला सुषुम्ना का तारतम्य हुआ
प्रेमवश अश्रुधारा बहने लगी
हृदय भावविभोर हो उठा
हृदय पटल पर साक्षात हरि जी
सुदर्शनचक्र लेकर विराजमान थे
नभ से फूलों की वर्षा हो रही थी
तभी घड़ी का अलार्म बजा
तो पता चला कितना सुंदर स्वप्न मैंने देखा
@मीना गुलियानी
अपनी आस्था को परखा
मन कुछ डांवाडोल रहा
चेतना ने उसका साहस बढ़ाया
वो फिर से कुछ दृढ़ हुआ
जिंदगी में दुःख सुख आते हैं
उनसे घबराना कैसा सामना करो
विधाता की ही दोनों रचना हैं
उनको समभाव से देखो और
उनका सम्मान करो
निर्विकार निर्विकल्प रहकर
मन का मंथन किया
हृदय कल्पद्रुम सा खिल उठा
भावना के ज्वार उठने लगे
मन में वीणा के तार बजे
सप्तसुर जगने लगे
कोयल कूकने लगी
मोर नाचने लगा पपीहा गाने लगा
ऐसा लगा मन में इंद्रधनुष खिल उठा
गगन धरा का मिलन हुआ
इड़ा पिंगला सुषुम्ना का तारतम्य हुआ
प्रेमवश अश्रुधारा बहने लगी
हृदय भावविभोर हो उठा
हृदय पटल पर साक्षात हरि जी
सुदर्शनचक्र लेकर विराजमान थे
नभ से फूलों की वर्षा हो रही थी
तभी घड़ी का अलार्म बजा
तो पता चला कितना सुंदर स्वप्न मैंने देखा
@मीना गुलियानी
बहुत सुंदर सपना देखा आपने आदरणीय मीना जी
जवाब देंहटाएंआपका सपना सत्य हो ,और इन सपनों की हमें भी प्रेरणा मिलती रहे । बहुत खूब
सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर
Thanks all
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