कभी रोने का मन हो तो
अकेले में ही बैठकर रोना
वरना तुम्हारे रोने का भी
सब मज़ाक ही तो उड़ायेंगे
कौन है तुम्हारी सुनने वाला
सब चार बातें ही बनायेंगे
सबको हँसने वाले चेहरे भाते हैं
रोने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं
कोई मजबूरियों को न जाने
उसके आँसुओं की कीमत न जाने
सिर्फ उसके रोने पे मुस्कुरायेंगे
सबकी सुनने वाला सुनेगा कभी
तू अपना दुखड़ा उसे सुना तो सही
क्या मिलेगा जो रोया सबके आगे
रोना है तो रो उसके ही आगे
वो ममता अपनी तुझपे लुटायेगा
तेरा मुरझाया चेहरा खिल जाएगा
@मीना गुलियानी
अकेले में ही बैठकर रोना
वरना तुम्हारे रोने का भी
सब मज़ाक ही तो उड़ायेंगे
कौन है तुम्हारी सुनने वाला
सब चार बातें ही बनायेंगे
सबको हँसने वाले चेहरे भाते हैं
रोने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं
कोई मजबूरियों को न जाने
उसके आँसुओं की कीमत न जाने
सिर्फ उसके रोने पे मुस्कुरायेंगे
सबकी सुनने वाला सुनेगा कभी
तू अपना दुखड़ा उसे सुना तो सही
क्या मिलेगा जो रोया सबके आगे
रोना है तो रो उसके ही आगे
वो ममता अपनी तुझपे लुटायेगा
तेरा मुरझाया चेहरा खिल जाएगा
@मीना गुलियानी
प्रिय मीना जी आपकी ये पंक्तियाँ पढ़कर मुझे अपनी ये पंक्तियाँ याद आई -
जवाब देंहटाएंअपना रोना छिपा लिया है -
तुमने किसी बहाने से ,
पर बरसातें कब रुकती हैं -
सावन के आ जाने से ;
इक दिन जो रोने की खातिर -
मजबूत सा कंधा मिल जाएगा ,
आसूं का ये बांध उसी पल -
बंध तोड़ के बह जाएगा !!!!!
सार्थकता का संदेश देती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनयें सखी |