इस जीवन की भाग दौड़ में
कड़ी धूप और घनी छाँव में
क्या खोया और क्या पाया है
क्या तुमको यह पता है कि
रात दिन हम इन बंजारों
की तरह घूमते ही रहते हैं
इन पर्वतों के साये तले
नदिया किनारे हाथ थामे
तुम्हारी यादों को साथ लिए
सुलगते बुझते चलते रुकते
घूमते न जाने क्या ढूँढ़ते
हमने यह जीवन बिताया है
@मीना गुलियानी
कड़ी धूप और घनी छाँव में
क्या खोया और क्या पाया है
क्या तुमको यह पता है कि
रात दिन हम इन बंजारों
की तरह घूमते ही रहते हैं
इन पर्वतों के साये तले
नदिया किनारे हाथ थामे
तुम्हारी यादों को साथ लिए
सुलगते बुझते चलते रुकते
घूमते न जाने क्या ढूँढ़ते
हमने यह जीवन बिताया है
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें