यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

उसे प्रेम का पाठ पढ़ाया

एक हवा का झोंका चुपके से आया
आते ही उसने फूलों को सहलाया
खुशबु से अपनी गुलशन को महकाया
धीरे से उसने जुल्फों को बिखराया
कंधे पे रखकर हाथ वो था मुस्कुराया
दिल के करीब ही खिंचा चला आया
मौसम ने फिर से जीना है सिखाया
लगता है जैसे कोई त्यौहार आया
लगता है कान्हा ने बाँसुरी को बजाया
गोपीवृन्द भी संग संग चले जैसे छाया
राधा का कान्हा ने मन को हुलसाया
नदिया किनारे कदम्ब की वो छाया
कान्हा ने वहीँ उसके नीचे रास रचाया
कालिन्दी की धारा ने सब याद दिलाया
गोपियों ने विरह जल था उसमें बहाया
अश्रुजल से काली पड़ी कालिन्दी की काया
कान्हा का सा ही रूप उसने था लखाया
जिसने उद्धव का मान भी खण्डित कराया
जो ज्ञान का सन्देश देने को था आया
गोपियों ने ही उल्टा उसे प्रेम का पाठ पढ़ाया
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी: