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बुधवार, 3 जून 2015

माता की भेंट - 78



चली चली  रे भवानी मैया चली रे , होके शेर पे सवार ,
  लेके हाथ में कटार,  लेती राक्षसों के शीश की है बलि रे 

मैया जिस ओर शेर को भगाए , जिन्दा कोई भी न बचके जाये 
जो मुकाबले में आया , मानो उसका सफाया 
मौत  राक्षसो के सीस पर खली रे  चली चली  रे भवानी मैया चली रे

लाखो राक्षस है मैया जी अकेली,  होली पापियो के खून साथ खेली 
महिषासुर को सिधार , चड मुंड दिए मार 
रणभूमि तो हुई तरथली रे चली चली  रे भवानी मैया चली रे

अकबर था बड़ा अभिमानी , जिस जोतो पे गिराया नहर पानी 
तवे लोहे के जड़ाई , प्रकट हुई महामाई 
जोत आगे से भी बढ़कर जली रे चली चली  रे भवानी मैया चली रे



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