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बुधवार, 22 मार्च 2017

आँसुओं में डूब न जाऊँ कहीँ

मुझे खुद पे ऐतबार है लेकिन
ये ज़ुबाँ फिसल न जाए कहीँ

तुम रहो हमेशा  हमारे ही आस पास
नज़र नवाज़ नजारे बदल न जाए कहीँ

तमाम उम्र अकेले सफर किया हमने
साथ पाके  आदत बदल न जाए कहीँ

तुम्हारे ख़्वाब कभी शोला हुआ करते थे
देखो कहीँ वो कमज़ोर पड़ न जाए कहीँ

 एहसास से लबालब भरा हुआ हूँ
तेरे आँसुओं में डूब न जाऊँ कहीँ
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी:

  1. क्या बात हैं....मुझे खुद पे ऐतबार है लेकिन
    ये ज़ुबाँ फिसल न जाए कहीँ

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