मेरी कल्पना में तुम झील सी लगती हो
मैं इक नाव बनता हूँ तुम उसमें तरती हो
तुमको यूँ ही ज़रा सा भी मैं छू लूँ तो
लगता है जैसे पत्तों से ओस गिरती हो
तुम तो अक्सर खुद ऐसे ही सिहर जाती हो
जैसे बन्दूक के गोली से चिड़िया डरती हो
दिल के दरवाजो को कभी तो खुला रखो
करें क्या दीद की हसरत गर उभरती हो
@मीना गुलियानी
मैं इक नाव बनता हूँ तुम उसमें तरती हो
तुमको यूँ ही ज़रा सा भी मैं छू लूँ तो
लगता है जैसे पत्तों से ओस गिरती हो
तुम तो अक्सर खुद ऐसे ही सिहर जाती हो
जैसे बन्दूक के गोली से चिड़िया डरती हो
दिल के दरवाजो को कभी तो खुला रखो
करें क्या दीद की हसरत गर उभरती हो
@मीना गुलियानी
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