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सोमवार, 6 मार्च 2017

फिर से रोशनी तो कीजिये

इन हवाओं में फिर लपट सी आने लगी है
कुछ ठण्डे पानी के छींटे इन पर दीजिये

तुमको भी याद कर लेंगे इस बहाने से हम
दो चार पत्थर ज़रा इधर फेंक तो दीजिये

जीना मरना तो यहाँ लगता ही रहेगा
कुछ घड़ी आराम से ज़रा जी तो लीजिये

ये पेड़ भी जुबाँ रखते हैं साजों की तरह
इनकी उदासी को ज़रा दूर तो कीजिये

जिनका जहाँ में कहीँ और ठिकाना न रहा
उनके दिलों में फिर से रोशनी तो कीजिये
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी:

  1. बड़ी अच्छी लगी यह बात..
    "ये पेड़ भी जुबाँ रखते हैं साजों की तरह"

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