यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 5 मार्च 2017

तुमको भूलने लगा हूँ मैं अब

इतना दुःख मन में इकट्ठा हो गया
देख तुमको भूलने लगा हूँ मैं अब

कितनी चट्टानों से गुज़रा पाँव में छाले पड़े
सोचो कितनी तकलीफों से गुज़रा हूँ अब

मेरी जिंदगी का अब कोई मकसद नहीँ
इस इमारत में कोई गुम्बद नहीँ है अब

इस चमन को देखो सुनसान नज़र आये
एक भी पंछी शायद यहॉ नहीँ है अब

पहले तो  सब अपने से लगते थे यहॉ
दिलकश नज़ारे पराये लगने लगे अब

आज मेरा साथ दो मुझको यकीं है मगर
पत्थरों में चीख कारगर होगी न अब
@मीना गुलियानी


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें