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बुधवार, 14 मार्च 2018

किसी का दिल बहलाने

मैं जो कहता था तब किसी ने न सुना
अब चुप हुआ तो सबने बनाए अफ़साने

अपने ग़म खुद ही समेटे जीने के लिए
चाहता हूँ कि कोई भी न मुझे पहचाने

गुज़ारे हैं कितने ही लम्हे यूँ तेरे बगैर
अब तो खुद को भी लगने लगे दीवाने

ये चाँद सितारे भी आज ग़ुम क्यों हुए
गए हैं शायद किसी का दिल बहलाने
@मीना गुलियानी


1 टिप्पणी:

  1. वाह बहुत सुन्दर मीना जी।
    आप का लेखन सरल और प्रवाह लिये सदा आकर्षित करता है ।

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