प्रकृति की मनोरम छटा लुभा रही है
कहीं ऊँचे पर्वत तो कहीं खलिहान
कहीं गुलिस्तान तो कहीं रेगिस्तान
धरती की धानी चुनरी लहरा रही है
नदिया की कल कल ध्वनि आ रही है
एक मधुर संगीत की लय भा रही है
बहते झरने धरा से कुछ कह रहे हैं
चंद्रकिरणें पत्तों से छनके आ रही हैं
बादल भी उमड़ घुमड़कर छाने लगे हैं
गगन के तारे भी चमक दिखाने लगे हैं
धीमे से पुरवइया कुछ गुनगुना रही है
सुनके धरा भी जिसे सकुचा रही है
मन का मयूरा देखो कैसे इतरा रहा है
पपीहा भी पीहू पीहू की रट लगा रहा है
मधुर मिलन की नैनो में प्यास लिए
धरती गगन की ओर बढ़ी जा रही है
@मीना गुलियानी
कहीं ऊँचे पर्वत तो कहीं खलिहान
कहीं गुलिस्तान तो कहीं रेगिस्तान
धरती की धानी चुनरी लहरा रही है
नदिया की कल कल ध्वनि आ रही है
एक मधुर संगीत की लय भा रही है
बहते झरने धरा से कुछ कह रहे हैं
चंद्रकिरणें पत्तों से छनके आ रही हैं
बादल भी उमड़ घुमड़कर छाने लगे हैं
गगन के तारे भी चमक दिखाने लगे हैं
धीमे से पुरवइया कुछ गुनगुना रही है
सुनके धरा भी जिसे सकुचा रही है
मन का मयूरा देखो कैसे इतरा रहा है
पपीहा भी पीहू पीहू की रट लगा रहा है
मधुर मिलन की नैनो में प्यास लिए
धरती गगन की ओर बढ़ी जा रही है
@मीना गुलियानी
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