क्यों तेरे चेहरे पर दिखाई देती हैं वीरानियाँ
अजीब सी करती हैं मुझसे ये सरगोशियाँ
क्यों हैं फूलों के बगीचे यूँ पड़े सुनसान से
दर्द के गुल खिले छाईं ग़म की बदलियाँ
क्यों छिपा रहे हो हाथों से अपना चेहरा तुम
तेरे चेहरे से अयाँ होती कितनी कहानियाँ
दिल तेरा यूँ टूटा टूटा रोता है चुपचाप क्यों
अक्सर सुनाई देती हैं मुझे तेरी सिसकियाँ
@मीना गुलियानी
अजीब सी करती हैं मुझसे ये सरगोशियाँ
क्यों हैं फूलों के बगीचे यूँ पड़े सुनसान से
दर्द के गुल खिले छाईं ग़म की बदलियाँ
क्यों छिपा रहे हो हाथों से अपना चेहरा तुम
तेरे चेहरे से अयाँ होती कितनी कहानियाँ
दिल तेरा यूँ टूटा टूटा रोता है चुपचाप क्यों
अक्सर सुनाई देती हैं मुझे तेरी सिसकियाँ
@मीना गुलियानी
बहुत उम्दा!!!
जवाब देंहटाएंदर्द को उकेर दिया सादगी से।
जवाब देंहटाएंवाह वाह रचना ।