कभी कभी ये सारा जहाँ
मुझे तुच्छ जान पड़ता है
मुझे लगता है कि मैं किसी
महाशून्य में खो गई हूँ
मैं खुद को जानना चाहती हूँ
कि मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ?
क्या है मेरा वर्चस्व ,अस्तित्व
अपने आप को पाना चाहती हूँ
खुद को मिटाकर मैं
उस शून्य से खुद को मैं
उबारना चाहती हूँ
अब इस अन्धकार को
भेदकर बाहर आना चाहती हूँ
इस गहन यंत्रणा को
मैंने बहुत झेला है
पर अब और नहीं
अब मुक्ति पाना ही
मेरा लक्ष्य बन चुका है
@मीना गुलियानी
मुझे तुच्छ जान पड़ता है
मुझे लगता है कि मैं किसी
महाशून्य में खो गई हूँ
मैं खुद को जानना चाहती हूँ
कि मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ?
क्या है मेरा वर्चस्व ,अस्तित्व
अपने आप को पाना चाहती हूँ
खुद को मिटाकर मैं
उस शून्य से खुद को मैं
उबारना चाहती हूँ
अब इस अन्धकार को
भेदकर बाहर आना चाहती हूँ
इस गहन यंत्रणा को
मैंने बहुत झेला है
पर अब और नहीं
अब मुक्ति पाना ही
मेरा लक्ष्य बन चुका है
@मीना गुलियानी
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्थूल से सूक्ष्म की और ।
सापेक्ष रचना।