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शुक्रवार, 2 मार्च 2018

हम दूर होने लगे हैं

यूँ यादों में उनकी खोने लगे हैं
कभी हँसते हँसते यूँ रोने लगे हैं

न बेचारगी थी हमें इससे पहले
कि यादों में खुद को खोने लगे हैं

सीखा न जीने का हमने सलीका
अरमां ये नश्तर चुभोने लगे हैं 

है दर्द ये कैसा बताए तो कोई
नशेमन में खुद को डुबोने लगे हैं

उतरे भी कैसे कोई साहिल के पार
साहिल से हम दूर होने लगे हैं
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी:

  1. है दर्द ये कैसा बताए तो कोई
    नशेमन में खुद को डुबोने लगे हैं
    क्या खूब लिखा है आपने। सुंदर गजल....

    जवाब देंहटाएं