मैं एक पानी की बूँद हूँ
कुछ हवा भी तूफ़ान उठाती है
एक प्रलय ,ज्वारभाटा सा
मेरे अन्तर में उभरता है
हर कोई जिसे नहीं समझता
कभी शबनम तो कभी शोले
मेरे अन्तर में धधकते हैं
हर लम्हा मेरा रूप
बदलता ही रहता है
रात दिन एक प्रलय सा
तूफ़ान उमड़ता है
वक्त ने मुझे ऐसे मोड़ पे
लाकर खड़ा कर दिया
कितना कोहराम मचता है
पर सुनता ही कौन है
कभी मेरे अन्तर में
झरना बहा करता था
आज वो एक रेगिस्तान
बन चुका है
यह सब वक्त की
विडम्बना , कड़वा सच है
@मीना गुलियानी
कुछ हवा भी तूफ़ान उठाती है
एक प्रलय ,ज्वारभाटा सा
मेरे अन्तर में उभरता है
हर कोई जिसे नहीं समझता
कभी शबनम तो कभी शोले
मेरे अन्तर में धधकते हैं
हर लम्हा मेरा रूप
बदलता ही रहता है
रात दिन एक प्रलय सा
तूफ़ान उमड़ता है
वक्त ने मुझे ऐसे मोड़ पे
लाकर खड़ा कर दिया
कितना कोहराम मचता है
पर सुनता ही कौन है
कभी मेरे अन्तर में
झरना बहा करता था
आज वो एक रेगिस्तान
बन चुका है
यह सब वक्त की
विडम्बना , कड़वा सच है
@मीना गुलियानी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंकभी मेरे अन्तर में
जवाब देंहटाएंझरना बहा करता था
आज वो एक रेगिस्तान
बन चुका है....
ये शब्द मन के अंदर छिपी व्यथा और वेदना को साकार करते हैं ! प्रभावपूर्ण प्रस्तुति भावों की....
सत्य बात है , अंतर के तूफ़ान को कौन समझता है
जवाब देंहटाएंदिल की भवनाओं को ख़ूब उतारा है
आदरणीया धन्यवाद
कभी मेरे अन्तर में
जवाब देंहटाएंझरना बहा करता था
आज वो एक रेगिस्तान
बन चुका है
यह सब वक्त की
विडम्बना , कड़वा सच है ------बहुत सच ---
यही कडवा सच हर संवेदनशील मन का है | सार्थक रचना आदरणीय मीना जी | सादर ------
सुन्दर सार्थक कड़वा सच.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!