जी चाहता है पँख लगाकर
नील गगन की परिक्रमा करूँ
आकाश की ऊँचाइयाँ छू लूँ
जहाँ घुटन भरे बादल न हों
न ही भेदभाव या स्वार्थ हो
हर तनाव ताप से मुक्त होऊं
जीवन सागर की गहराई में
फिर डूबकर गोता लगाऊँ
जीवन के सत्य के मोती ढूँढूँ
जीवन में मधुरता भर लूँ
उपवन सी ताज़गी पा लूँ
मन की भटकन खत्म करूँ
सरल शान्ति की आगोश पाऊँ
और जीवन की भंवर से उबरूँ
@मीना गुलियानी
नील गगन की परिक्रमा करूँ
आकाश की ऊँचाइयाँ छू लूँ
जहाँ घुटन भरे बादल न हों
न ही भेदभाव या स्वार्थ हो
हर तनाव ताप से मुक्त होऊं
जीवन सागर की गहराई में
फिर डूबकर गोता लगाऊँ
जीवन के सत्य के मोती ढूँढूँ
जीवन में मधुरता भर लूँ
उपवन सी ताज़गी पा लूँ
मन की भटकन खत्म करूँ
सरल शान्ति की आगोश पाऊँ
और जीवन की भंवर से उबरूँ
@मीना गुलियानी
वाह सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावो से युक्त रचना।
जवाब देंहटाएं