यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

विश्राम दे दो

मेरे मन की पीड़ा को तुम तनिक विश्राम दे दो 
बादलो घुमड़ना छोडो अब तनिक आराम दे दो 
भूलना चाहती हूँ मैं भी वेदना के सारे वो पल 
बरसा दो आँगन में बूँदे अब ज़रा आराम दे दो 

पी पी करके पपीहा थक चुका है अब तो वह भी 
अब न तरसाओ  क्लान्त मन को शान्ति दे दो 
दुःख से घबराने लगा मन पीड़ा के निष्ठुर हैं क्षण 
आओ बहुत विचलित हुआ मन इसे विराम दे दो 

इक तुम्हारे आने से खिल उठेगा मन का ये उपवन 
सुरभि फिर महकाएगी तन मन पुलक उठेगा गुलशन 
कोई भी  उदासी छू न पाए करो ऐसे अमृत से सिंचन 
तुम्हारे ये बोल मीठे मोह लेते मन बन जाता वृन्दावन 
@मीना गुलियानी 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें