मेरे मन की पीड़ा को तुम तनिक विश्राम दे दो
बादलो घुमड़ना छोडो अब तनिक आराम दे दो
भूलना चाहती हूँ मैं भी वेदना के सारे वो पल
बरसा दो आँगन में बूँदे अब ज़रा आराम दे दो
पी पी करके पपीहा थक चुका है अब तो वह भी
अब न तरसाओ क्लान्त मन को शान्ति दे दो
दुःख से घबराने लगा मन पीड़ा के निष्ठुर हैं क्षण
आओ बहुत विचलित हुआ मन इसे विराम दे दो
इक तुम्हारे आने से खिल उठेगा मन का ये उपवन
सुरभि फिर महकाएगी तन मन पुलक उठेगा गुलशन
कोई भी उदासी छू न पाए करो ऐसे अमृत से सिंचन
तुम्हारे ये बोल मीठे मोह लेते मन बन जाता वृन्दावन
@मीना गुलियानी
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