यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

एक पत्नी की मनुहार पति से

नहीँ कहती आपसे चाँद तारे तोड़ लाओ 
जब आते हो एक मुस्कान साथ लाओ   

नहीँ कहती कि मुझे सबसे ज्यादा चाहो 
पर प्यार की एक नज़र तो उठाया करो 

नहीँ कहती कि बाहर खिलाने ले जाओ 
पर एक पहर साथ बैठके तो खाया करो 

नहीँ कहती कि हाथ तुम भी बंटाओ मेरा 
पर कितना करती हूँ देख तो जाया करो 

नहीँ कहती कि हाथ पकड़कर चलो मेरा 
पर कभी दो कदम तो साथ आया करो 

यूँ ही गुज़र जाएगा सफर भागते भागते 
एक पल थक के साथ बैठ जाया करो 

नहीँ कहती  कि कई नामो से पुकारो 
एक बार फुर्सत से 'सुनो'कह जाया करो 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें