तेरी खिड़की से छनती हुई धूप
मेरी नज़रों में समाने लगी
कुछ प्रेम भरे सपने यादों के
आँखें पलकों में सजाने लगीं
अधखुली आँखों ने देखे थे
कुछ सपने वो अधूरे से ही
मतवाली रुत की वो बदली
आसमाँ पर लो छाने लगी
कोयलिया की कुहुक प्यारी
लागे मन में मीठी कटारी
यादों की सिहरन वो जगाये
मीठे बोलों से मन हर्षाए
इठलाती सी बाजे पायलिया
दूर बाजे पिया की मुरलिया
फूलों की खुशबू मन लुभाए
हँसके बोले वो नज़रें झुकाए
हर अदा उसकी मेरे मन को भाए
तन छुए जब मस्त पवन लहराए
चले झूमकर आँचल को बिखराये
चन्दा उतरा किरणों को छितराये
तेरी खिड़की से आती रोशनी
अब चन्दा को भी भाने लगी
उसकी किरणें प्यार लुटाने लगी
वो अमृत की बूँदे छलकाने लगी
@मीना गुलियानी
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