यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 7 नवंबर 2016

अमृत की बूँदे छलकाने लगी

तेरी खिड़की से छनती हुई धूप 
मेरी  नज़रों में समाने लगी 
कुछ प्रेम भरे सपने यादों के 
आँखें पलकों में सजाने लगीं 

 अधखुली आँखों ने देखे थे 
कुछ सपने वो अधूरे से ही 
मतवाली रुत की वो बदली 
आसमाँ पर लो छाने लगी 

कोयलिया की कुहुक प्यारी 
लागे मन में मीठी कटारी 
यादों की सिहरन वो जगाये 
मीठे बोलों से मन हर्षाए 

इठलाती सी बाजे पायलिया 
दूर बाजे पिया की मुरलिया 
फूलों की खुशबू मन लुभाए 
हँसके बोले वो नज़रें झुकाए 

हर अदा उसकी मेरे मन को भाए 
तन छुए जब मस्त पवन लहराए 
चले झूमकर आँचल को बिखराये 
चन्दा उतरा किरणों को छितराये 

तेरी खिड़की से आती  रोशनी 
अब चन्दा को भी भाने लगी 
 उसकी किरणें प्यार लुटाने लगी 
वो अमृत की बूँदे छलकाने लगी
@मीना गुलियानी 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें