कितनी चंचल है नदी की ये धारा
इस पार से उस पार जाती तो है
दिल का दिया भी बुझने को है
लाओ चिंगारी इसकी बाती तो है
लहरों का अस्तित्व मिटने से पहले
सागर के तट पर टकराती तो है
संध्या ने ओढ़ी है अपनी काली चुनरिया
फिर भी रात के बाद भोर आती तो है
मानती हूँ कि अभी तक हूँ मैं खाली हाथ
मगर पवन गीत मेरे संग में गाती तो है
@मीना गुलियानी
इस पार से उस पार जाती तो है
दिल का दिया भी बुझने को है
लाओ चिंगारी इसकी बाती तो है
लहरों का अस्तित्व मिटने से पहले
सागर के तट पर टकराती तो है
संध्या ने ओढ़ी है अपनी काली चुनरिया
फिर भी रात के बाद भोर आती तो है
मानती हूँ कि अभी तक हूँ मैं खाली हाथ
मगर पवन गीत मेरे संग में गाती तो है
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